किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया।




 गर हवाओं से इज़ाज़त लेनी पड़े

सम्माओं को जलाने के लिये

ताक पर रख दो जज़्बात अपने

रखो अहसासों को भी आग में जलाने के लिए


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

ख्वाबों में भी आने के लिये

सुलगा दो ये जिस्म भी अपना

उसकी यादों को जलाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

उसे मिलने बुलाने के लिये

तप्त कर दो धरा को भरपूर

जमीं से परिंदों को उड़ाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

उनसे बातें करने के लिये

जला कर राख कर दो उस पल को

जिसमे ख्याल आया हाले दिल सुनाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया

हुस्न -ए- दीदार करने के लिये

बहा दो आँशुओं की दरिया

हुस्न को भी बहाने के लिये।


गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया को

कस्तियां डुबाने के लिये

तू रेत का ढेर हो जा दरिया

तरसे मल्लाह कस्तियां तैराने के लिये।

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