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Showing posts from November, 2020

किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया।

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 गर हवाओं से इज़ाज़त लेनी पड़े सम्माओं को जलाने के लिये ताक पर रख दो जज़्बात अपने रखो अहसासों को भी आग में जलाने के लिए गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया ख्वाबों में भी आने के लिये सुलगा दो ये जिस्म भी अपना उसकी यादों को जलाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया उसे मिलने बुलाने के लिये तप्त कर दो धरा को भरपूर जमीं से परिंदों को उड़ाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया उनसे बातें करने के लिये जला कर राख कर दो उस पल को जिसमे ख्याल आया हाले दिल सुनाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया हुस्न -ए- दीदार करने के लिये बहा दो आँशुओं की दरिया हुस्न को भी बहाने के लिये। गर इज़ाज़त लेनी पड़े दरिया को कस्तियां डुबाने के लिये तू रेत का ढेर हो जा दरिया तरसे मल्लाह कस्तियां तैराने के लिये।

कुंठित मानसिकता।

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 मेरी सोंच उस आधुनिकता की भेंट नहीं चढ़ना चाहती थी जिसमें एक लड़की के बहुत से बॉयफ्रेंड हुआ करते हैं और ओ जब जिससे चाहे उससे बात करे  , जहां जिसके साथ चाहे घूमे टहले , ओ आधी रात को आये या दोपहर को , मैं आशिक हूँ तो आशिक की तरह रहूं, उसे रोकने टोकने का मुझे कोई अधिकार न रहे। अगर इसे आधुनिकता और आधुनिकता में छुपी अय्यासी को ही आज़ादी कहते हैं तो मुझे सख़्त नफ़रत है उस आज़ादी से और उसका अनुसरण करने वाले आज़ाद पंछी से। इतने दिन बाद भी कोई दिन नहीं बीतता जो उसकी यादों के बगैर गुजर जाये क्योंकि मैंने उसे चाहा है दिल की अटूट गहराई से , जिस्म की आंच से भी उसे बचा के रखा है।नफ़रतों के साये तक न पड़ने दिया है उस पर।जिंदगी की एक अनमोल धरोहर की तरह मैने उसे छुपा के रखा है उसे अपने दिल के किसी कोने में जहां सिर्फ और सिर्फ ओ रहती है उसके सिवा कोई नहीं। अपने रिस्ते के धागे और उसके अदाओं की मोती की जो प्रेम रूपी माला बनाई है उसकी इकलौती वारिस और मालिकाना हक भी सिर्फ वही रखती है। निरंतर बहते नदी की धारा की तरह एक प्रेम का प्रवाह दूंगा उसे मैं। भले इसके लिए मुझे कितना भी कुंठित क्यों न होना पड़े। हां हां...

हम खुद से मिलकर आये थे।

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  उम्मीदों  के  साये  मँडराने  लगे ओ हमें देख कर मुस्कुराने लगे। हम भी ज़रा ठिठुक गये थे चलते चलते जब ओ रुक गये ख़ामोशी से पलकें उठाये थे हम खुद से मिलकर आये थे।

इश्क़ में वापसी का कोई रास्ता नहीं होता।

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  झलक   देख  कर  फ़लक  तक  जाने  वालों इश्क़  में  वापसी  का  कोई  रास्ता नहीं होता होकर  आओ  कभी  वैश्याओं  की गलियों से वहां भोजन मिलता है कभी नास्ता नहीं होता। ख़्वाब मुकम्मल होते हैं तक़दीर की गहराइयों से सिर्फ हथेलियां घिसने से सौदा सस्ता नहीं होता। कसम  है   गर   तुम्हें   एक   बार  भी  मैं  रोकूं मरते  इश्क़  से  मेरा  कोई  वास्ता  नहीं  होता। गर समझती तुम गिड़गिड़ाहट मेरी भी सनम हमारे दरमियां इतना बड़ा हादसा नहीं होता।

कहां लिखा है।

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बिछड़ कर तुमसे तेरा होना कहां लिखा है मेरी किस्मत में अब सोना कहां लिखा है। चाहो  तो  गलियां मेरी भी रोशन हो जाये खुदा वरना अंधेरे को उजाले का होना कहां लिखा है। कही  थी  बगैर  मेरे  मर   तो   नहीं  जाओगे मेरी हालात पर तुम्हें अब रोना कहां लिखा है। मोती  की  तरह  जो  आज बह रहे हो अश्क़ मेरी आँखों का तेरा अब होना कहां लिखा है।

छुवन

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 खुद पर मुझे अब एतबार हो गया तुझे देखा तो  मुझे प्यार हो गया। भले  बाहों से बाहें न मिले  कभी पर नयनों से प्यार बेसुमार हो गया। तुम जिंदगी की सबसे अजीज़ हो तेरी छुवन से मुझे प्यार हो गया।

चाँद की ख्वाइस।

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  चाँद की ख्वाइस न रही मुझको बस पैरों की धूल  बना  लो तुम जिस पर भुलाई हो सारी दुनिया वही छोटी सी भूल बना लो तुम। सात जन्मों का साथ न चाहिये मुस्कुराने का मूल बना लो तुम हंस  के  खाई हो बहुत गोलीयां उन सबका कैप्सूल बना लो तुम।

कभी तो याद मुझे भी करोगी।

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  कभी तो याद मुझे भी करोगी देखूंगा फिर कैसे तुम रहोगी। समझता हूँ कि जान हो मेरी कभी तो मुझे आप समझोगी समझोगी जान जिस दिन मुझे देखूंगा कैसे जान के बगैर रहोगी। लत तुम्हारी है जो मुझको सनम आज दर- ब- दर मैं भटकता हूँ हो जाएगी जिस दिन लत हमारी देखूंगा जितनी सयंमित रहोगी। मज़बूर हूँ आज अपने दिल की  बेवजह सूनसान चाहतों से सनम एक बार इश्क़ तुम्हे भी हो जाये देखूंगा कैसे महबूब के बगैर रहोगी।

वापसी

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  जिम्मेदारियों  के  ऐसे  शिकंजे  में  फंसे की चूड़ी और कंगन भी हमें रोक न सके। कमाये  बहुत  टुकड़े  कागजों  के  मगर चैन - ओ - सुकून  हम  खरीद  न  सके। दबे पांव बीत गयी  छुट्टियां  दीवाली की हम नयनों को भी ठीक से सींच न सके।

उतरते गये उसके तन से कपड़े सारे।

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 उसकी यादों का बाज़ार बहुत गरम था बदन का कोना कोना बहुत ही नरम था उतरते गये उसके  तन  से  कपड़े  सारे शाम मदहोश थी,  मैं बहुत बेशरम था।

मानता हूँ की चूड़ियों में खनक बहुत थी।

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 मानता हूँ की चूड़ियों में खनक बहुत थी उलझी  हुयी  जुल्फों  में महक बहुत थी छोड़  न  देता  उसे  तो  करता  भी क्या पढ़ने की  तब  मुझमें  सनक  बहुत  थी।

ख्वाबों के महल झोपड़ी में दफन हो गये।

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 ख्वाबों  के  महल   झोपड़ी   में   दफन  हो  गये छोटी  उम्र  में  जिम्मेदारियों  के  सिकन  हो गये किसी  और  के  हालात  ही  क्या  बयां करें हम अपनी  गर्मी के कम्बल शर्दियों के कफन हो गये।

सुंदरता।

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 जितनी   तन    से   सुंदर  उतनी  ही  मन  से  सुंदर लगता  है  जैसे  कि  तुम हो  सुंदरता  का  समंदर। जितनी  आचार की सुंदर उतनी ही विचार की सुंदर लगता   है  जैसे  कि  तुम  हो सुंदरता  के अंदर सुंदर।        "दरिया"

स्टेटस

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स्टेटस

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आहट।

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शायरी ।

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    न कर खुद से इतनी नफरत ए - दरिया चाँद से  आगे  भी है एक हंसीन दुनिया तराश  डाल  खुद  को  इस   बेबसी  में बन जा मुहब्बत- ए- रोशनी का जरिया।      

शायरी।

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 गुनहगार  हैं  हम  जो  गुनाहों को बयां करते हैं समझदार  हैं  ओ  जो  हर  बार गुनाह करते हैं। मेरी  ख़ामोशी  और  तनहाइयाँ  मुझे  सताती हैं वाह रे मुहब्बत  तू कितनी अदब से पेस आती है।          

डिजिटल लव (Digital Love)

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न चेक करो इतनी डीपी मेरी वर्ना प्रोफाइल लॉक कर देंगे। गर करते रहे यूं ही मैसेज तुम तो तुम्हें भी हम ब्लॉक कर देंगे। मालूम  है  कि  आप शादी शुदा हो आते समय दरवाज़ा नॉक कर देंगे। मोहब्बत तो आप सूरत से  किये हो सीरत से हम आपको शॉक कर देंगे। पता  तो  चल  गया  है  पता तुम्हारा तेरी  गलियों  में  हम  वॉक कर लेंगे। मिल  गयी  तुम  तो  मेरी  किस्मत है वरना  वहीं हम डांस फॉक कर लेंगे।

आ बैठ जिंदगी ।

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  आ बैठ जिंदगी तुझसे  बंटवारा  कर  लेते हैं आधी काट दी, आधी से किनारा कर लेते हैं। मुक़म्मल  एक  भी ख्वाब न होने दिया  तूने अब खुद  को    हम   बेसहारा  कर लेते हैं। जितना भी  गम  उठाया है  जिंदगी मेरे लिये आ सब का  हिंसाब हम  दुबारा  कर लेते हैं। मौत  से भी  भयावह किरदार तेरा है जिंदगी छोड़ तक़रार अब मेरा को हमारा कर लेते हैं।

गीत। तेरी यादें धीरे - धीरे ।

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  दफ़न   हो    रही    है तेरी यादें  धीरे - धीरे । खोता   जा   रहा   हूँ  खुदी  को  धीरे - धीरे। बदलती   जा   रही  है मेरी  सनम  धीरे - धीरे। बह  रहे   हैं  नयन  से ये अश्क  धीरे -  धीरे। जा  रही  है आंखों  से चमक   धीरे  -  धीरे। जिस्म  जां से हो रही जुदा   धीरे  -   धीरे । नजरों  से  उतर रही है ओ  नजर  धीरे - धीरे ।

जो जख्म तूने दिया ।

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  और  किस  क़दर  मैं तेरा साथ दूं कहो,  कैसे  मैं  जिंदगी  काट  दूं। ये  हालत  मेरी  उसी ने बनायी है अब  इल्ज़ाम  मैं किसके माथ दूं। जो  जख्म  तूने  दिया   है  सनम अब  उसे  मैं  कहां  कहां  बांट दूं। मेरी  खामोशियों  का  शोर हो तुम उन  यादों  को  मैं  कहां  पाट  दूं। न  देखा  था खुशबू-ए-ज़हर हमने तेरे  दीदार  को  कौन  सा  नाम दूं। जब  ठहराओ  नही  तुझमे दरिया बहने  के  सिवा  कौन  सा  काम दूं। छुड़ा  कर  हाथ जब तुम चली गयी अब  किसे मैं मोहब्बत का हाथ दूं। रख  लो  मेरे  हिस्से  की  खुशियां सारी प्रेम से ज्यादा गम का कौन सा पाथ दूं।

बिन तेरे जिंदगी बसर कैसे हो।

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  कोई और मेरी रहगुजर कैसे हो बिन तेरे जिंदगी बसर कैसे हो। यूं तो चखा हूँ नशा मैं भी बहुत पर तेरे आगे कोई असर कैसे हो

मशविरा मत देना।

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 इश्क कोई दूसरा मत देना जीने का मशविरा मत देना। छीन कर मेरी खुशियां सारी खुश रहने का मशविरा मत देना। वक्त  था  साथ  चलने  का नजरंदाज कर दिया आपने गम-ए- हालात देखकर मुझे साथ चलने का मशविरा मत देना। हो सके तो छीन लो सांसें हमारी झूठे वादों का जकीरा मत देना। मानता हूं कि मुश्किल है डगर पनघट की मुझे रास्ते बदलने का मशविरा मत देना। गर गुम हो जाऊं तेरी बाहों में ए हुस्न मुझे उठने का फिर मशविरा मत देना।

मेरे गांव को तूने शहर कर दिया।

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  रिश्तों  में  कैसा  जहर  भर  दिया मेरे  गांव  को  तूने शहर कर दिया चाँद - ए - दीदार  को मैं आतुर था वक्त  ने  फिर से दोपहर कर दिया। पसीने  छूट  रहे  हैं  बदल  के भी जुल्फों  ने  ऐसा  कहर  कर दिया। आँवांरगी  का  मज़ा  ही  अलग  है ख़्वावों ने रेत का शहर कर दिया। सरफिरे  शायरों  का  रहमों  करम है जो गुलाबी ओंठ को नहर कर दिया। रोंक  क्या  सकेंगी ज़माने की बंदिशें भले  पहरा  सातों  पहर  कर  दिया।

दूसरा आखिरी पन्ना।(Second Last Page)

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  अब बात नहीं होती, न ही fb पर रात - रात भर चैट होती है। काफी दिन गुजर जाता है, न ही कोई मैसेज न ही कोई call। सब बन्द पड़ा है अगर एक तरफ से hello आ भी जाता है तो दूसरी तरफ से रिप्लाई नहीं आएगा। ऐसा नहीं कि दोंनो तरफ से प्यार दफन हो गया है लेकिन हाँ दफनाने का प्रयास भरपूर किया गया है। अगर वक्त और हालात ने साथ दिया तो ओ पूर्णतया दफन भी हो जयेगा। चलो ये भी अच्छा है। लेटे - लेटे आशु सोंच रहा था कि देखो कैसे सारी रात गुजर जाती थी बातों - बातों में और पता भी नही चलता और वही रात लगता है की कितनी भारी हो गयी। जब प्यार में थे तो कैसे - कैसे  रहते थे । मज़ाल था कि बिना प्रेस  किये कपड़ा पहन कर office चले जायें, बिना पॉलिश के किये सूज़ पैर में डाल लें, वही दर्पण बार - बार देखा जाता था। वही फ़ोन जो हाथों से एक पल के लिये भी दूर नहीं होता था। उसके साथ - साथ जिंदगी के सारे तौर - तरीके बदल गये। कैसे लाइफ में इश्क के साथ परिवर्तन होता है। तब और अब में कितना फ़र्क हो गया है । अब तो जैसे भी मिल गया पहन लिया, जो भी मिल गया खा लिया, क्या पसंद क्या न पसंद, क्या प्रेस क्या न प्रेस कौन देखने वाला है ...