बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।
उदास सिलवटों की तुम्हीं सयन थी मेरी।
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तुम्हीं आह थी मेरी
तुम्ही चाह थी मेरी
मुस्कुराने की बस
तुम्हीं राह थी मेरी।
तुम्हीं रण थी मेरी
तुम्हीं प्रण थी मेरी
चुम्बन की आखिरी
तुम्हीं छण थी मेरी।
तुम्हीं हया थी मेरी
तुम्हीं दया थी मेरी
मेरे अल्फ़ाज़ों से
तुम्हीं बयां थी मेरी।
तुम्हीं नयन थी मेरी
तुम्हीं चयन थी मेरी
उदास सिलवटों की
तुम्हीं सयन थी मेरी।
तुम्हीं अगन थी मेरी
तुम्हीं लगन थी मेरी
चूमते मेरे माथे की
तुम्हीं सजन थी मेरी।
तुम्हीं जीत थी मेरी
तुम्हीं हार थी मेरी
बहते आँशुओं की
तुम्हीं धार थी मेरी।
तुम्हीं आज थी मेरी
तुम्हीं साज़ थी मेरी
छुपाता फिरूं जिसे
तुम्हीं राज़ थी मेरी।
तुम्हीं सवाल थी मेरी
तुम्हीं हवाल थी मेरी
होते अन्तर्द्वन्द की
तुम्हीं बवाल थी मेरी।
तुम्हीं गीता थी मेरी
तुम्हीं कुरान थी मेरी
बातें शास्त्र की करें
तुम्हीं पुरान थी मेरी।
"दरिया"
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किसी का टाइम पास मत बना देना।
बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।
तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो।
जो अमृत है ओ ज़हर कैसे हो तेरे बिन जिंदगी बसर कैसे हो। ख़्वाबों के अपने सलीक़े अलग हैं उजालों में इनका असर कैसे हो। इंसानियत प्रकृति की गोद में हो वहां कुदरत का कहर कैसे हो। घरों की पहचान बाप के नाम से हो वह जगह कोई शहर कैसे हो। पीने के योग्य भी न रह गया हो वह जल स्रोत कोई नहर कैसे हो। खुदगर्ज़ी की बांध से जो बंध गया हो उस सागर में फिर कोई लहर कैसे हो। ढल गया हो दिन हवस की दौड़ में फिर उसमें सांझ या दो पहर कैसे हो।
बस रोने को ही जी चाहता है।
बस रोने को ही जी चाहता है जाने क्या खोने को जी चाहता है। बचा नही कुछ भी अब मेरा जाने किसका होने को जी चाहता है। लिपट कर रोती है ये रात भी रात भर जाने किसके संग सोने को जी चाहता है। दौलत खूब कमाया उदासी और तन्हाई भी जाने किस खजाने को जी चाहता है। इर्ष्या द्वेष कलह फ़सल सारी तैयार है जाने कौन सा बीज बोने को जी चाहता है। ओढ़ ली कफ़न खुद से रूबरू होकर जाने कौन सी चादर ओढ़ने को जी चाहता है।
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