किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

जब भी मिलो तुम।

जब भी तुम मिलो

रोम रोम शिहर जाये

गुजारिस इतनी है बस

ओ पल ही ठहर जाये।


जब भी तुम मिलो

दरिया में लहर आये

इस कदर भीगो तुम

नज़र तुम पे ठहर जाये।


जब भी मिलो तुम

जुल्फें तेरी लह-रा-यें

चाँद बादल और तुम

कहर और कहर ढायें।


जब भी मिलो तुम

मेरे गांव की नहर आये

दौड़े जो तितली को

दुपट्टा ढक चेहरे को जाये।


जब भी मिलो तुम

ऐसा मंजर हो जाये

भले नयन नीर बहाये

पर मन मंद-मंद मुस्काये।


जब भी मिलो तुम

मेरा मन शहर को जाये

सन्नाटा दार एक कमरा हो

और हम तर बतर हो जायें।


जब भी मिलो तुम

चेहरा चंदन हो जाये

आंखें हों मधुशाला

गुलाबी चुम्बन हो जाये।



 

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