किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

ग़लतफहमी भाग 2

 

आज चार दिन हो गये, आशी ने बात नहीं की। ओ बहुत जिद्दी है ,हो सकता है कि ओ फिर कभी भी बात न करे क्योंकि उसकी कथनी और करनी में बहुत फर्क नहीं रहता है। पता नहीं कैसे रहती होगी। इतना आसान तो नहीं है बिरह की आग को ठंढा करना। लेकिन हर किसी का अपना अलग कंट्रोलिंग पावर होता है । हो सकता है कि ओ उसे अच्छे से मैनेज कर ले।

आशु का जो हाल है ओ तो मासा अल्ला है। सबकुछ जानते हुए भी आशु खुद को नहीं संभाल पाता है।

ओ इतना टूट चुका है कि खुद से भी बात नहीं करना चाहता है। जहाँ देखो वहां मु लटकाये बैठा रहता है। उसके हालात को देख कर नहीं लगता  कि ओ ज्यादा दिन तक काम कर पायेगा। पागलो जैसी स्थिति होती जा रही है। आप खुल के एक बार रो लो तो शायद भार कुछ कम हो जाये लेकिन छुप - छुप के रोना एक दम नासूर की तरह होता जो कभी ठीक नहीं होता।

उसके दिल-ओ- दिमाग मे सिर्फ एक ही बात घूम रही थी कि आखिर उसका प्यार इतना कमजोर कैसे हो गया कि एक अनजान के कमेंट मात्र से ही सब कुछ खत्म हो गया। कोई भी हो बातें समझने की कोशिश करता है लेकिन आशी की सिर्फ एक जिद थी कि ओ अब बात नहीं करेगी।इतनी नफरत हो गयी आशी को आशु से की ओ एक मिनट भी समय नही देना चाहती थी । पता नहीं लोग इतनी नफरत लाते कहाँ से हैं। नाराजगी अच्छी लगती है एक आध घण्टे की बात हो तो लेकिन इस कदर की चार - चार दिन बीत जाए आप बात ही न करो इसको नाराजगी तो नहीं कहते इसको अलगाव की तरफ आगे बढ़ना कहते हैं।

पिछली बार जब नाराज हुई थी तब कहा था उसने की अब मैं दुबारा कभी आपसे इस तरह नाराज नहीं हूँगी लेकिन मुझे लगता है कि ओ भूल गयी इस बात को। खैर अब उसको कौन याद दिलाने जाए जब उसने सारे रास्ते ब्लॉक कर रखे है। 

ओ कहती थी आप हस्ते हुए बहुत अच्छे लगते हो , आप यूं ही मुस्कुराया करो और जब तक साथ थी हंसा के रखी ।अब देखने थोड़ी आती है कि हंस रहा है आशु या रो रहा है। लेकिन अगर बातों पर यकीन किया जाए तो सबसे बेहतरीन तरीके से रुलाया है आशी ने आशु को।

ऐसा नहीं कि दर्द में सिर्फ आशु ही तड़प रहा है

तड़प तो आशी भी रही है और शायद आशु से कहीं ज्यादा , उसके प्यार में, उसकी यादों में, एक एक बात याद करके, जो अक्सर आशु बोला करता था और चिढ़ाता रहता था। आपको सिर्फ इज़ाज़त है गर्दन तक प्यार करने का उसके आगे मैं किसी और कि अमानत हूँ और कभी भी आपको उसके आगे प्यार का मौका नहीं मिलेगा। 

प्यार की लड़ियाँ अभी इकठ्ठा भी नहीं हुई थी कि विरह की हवाएं पैर पसारने लगी। आगे क्या होगा कुछ नहीं पता। लौट कर आशी आएगी भी या नहीं इसका कोई अंदाजा नहीं है। लेकिन फिर भी एक आस है कि गर आशु ने सच्चे दिल से चाहा होगा तो ओ लौट कर जरूर आएगी।

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