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Showing posts from June, 2020

किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

बदन सेनेटाइज कर रखा है

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मैंने खुद को कितना कस्टमाइज कर रखा है चेहरे पे मास्क और बदन सेनेटाइज कर रखा है तरसाना छोड़, अब तो आ जाओ न सनम मैंने पूरा दिल अपना फिल्टराइज़ कर रखा है यकीं नही होता तो देख लो बचपन का स्कूल चौदह दिन से  जहां क्वारंटाइन कर रखा है।

लाजबाब हो तुम।

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मेरे इश्क की आखिरी किताब हो तुम               लाजवाब से भी ज्यादा लाजवाब हो तुम।                 मालूम, तारीफ़ सुनने को बेताब हो तुम                मेरी शायरी के हर शब्द का ख्वाब हो तुम।                झकझोर देगी तुम्हे ये खामोसी भी मेरी               मेरे बेचैन सवालों का भी जवाब हो तुम।                 उतार लूँ चांद को जमीं पे गर कहो तुम                मेरे दिल पर हुकूमत-ए- नवाब हो तुम।                लौट भी आओ कि दिल बहुत उदास है            'दरिया' की रोजी रोटी का हिंसाब हो तुम।                                  "दरिया"

मुझे इश्क हो गया।

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तेरे लंबे - लंबे बालों से और सुर्ख गुलाबी गालों से मुझे इश्क हो गया। होंठों की कचनारों से और हिरनी सी चालों से मुझे इश्क हो गया। तेरे जुल्फों की घटाओं से और नयनों की मटकाओं से मुझे इश्क हो गया। तेरे व्यभिचारिणी हालातों से और संग में पीते - खातों से मुझे इश्क हो गया। ग्रीन टी के प्यालों से नाभी और कपालों से मुझे इश्क हो गया। तेरे संग चांदनी रातों से और मीठी - मीठी बातों से मुझे इश्क हो गया। तेरे बदलते अंदाज़ों से नये - नये आगज़ों से मुझे इश्क हो गया। तेरे टूटते होंसलों से बढ़ते गलत फैंसलों से मुझे इश्क हो गया। "दरिया"

पर्यवारण हमारा है।

हवा का सहारा है नदिया का किनारा है सच पूछो तो ये पर्यावरण हमारा है। पहाड़ों को तोड़ कर धाराओं को मोड़ कर जो हुनर हमने दिखया है परिणाम है उसी का आज, बच्चा - बच्चा बेसहारा है। ज़हर घोला है हमने नाला नदियों में खोला है हमने विज्ञान पढ़ पढ़ कर रसायनों का अविष्कार किया हमने परिणाम उसी का है हर इंशान आज बेचारा है। काश दादा की बात माने होते एक पौधा अपने हिस्से में लगाये होते कोने कोने में आज हरियाली होती समृद्धिवान ये पर्यावरण हमारा होता।

मन हरा होता।

हरा- भरा यदि धरा होता न चिंता हमें ज़रा होता। साख - साख मुस्कुराते पत्तियों का मन हरा होता। दोस्ती अपनी कायम होती बातों का गर खरा होता। सरकार योगी की न होती तो खेत इतना चरा न होता। चेताया समय से चीन होता संकट इतना बरा न होता। दोहन प्रकृति का न होता जो ज़र्रा-ज़र्रा इतना जरा न होता। 'दरिया'