किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

अपनों की कद्र नहीं ग़ालिब तेरी पनाह में।।

अपनों की कद्र नहीं ग़ालिब तेरी पनाह में
सज़ा उसकी मिली,न थे शामिल जिस गुनाह में।

ज़ख्म हरा था हरा ही रह गया
मरहम दिल न मिला आकर तेरी दरगाह में।

पैर फिसलता नहीं ख़ुदा तेरी उस दुनिया में
सुकून मिलता है, बस आकर कब्रगाह में।

मुक्कमल माफ़ी ही होती तेरी अदालत में
गर रिस्वत का ख्याल ,न आता गवाह में।

न काम की किच-किच न बॉस का चिर्र-पों
बनकर राजा रहा करते थे चरागाह में।

जब वक्त की तपिस हो , ज़रा ध्यान से सुनो 'दरिया'
अपने फ़ैसले बदल दो उसकी निगाह में।।

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