किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

रूठ के यूं न जा, ये जिंदगी मेरी ||


           ग़ज़ल
रूठ के यूं न जा,  ये जिंदगी मेरी
जख्म बन जाएगी बस ये यादें तेरी |
तड़पना मेरी बस मुक्कदर में है ,
वरना बाँहों में होती मोहब्बत मेरी |
रूठ के यूं .............................
चाह के भी न होती कम ये चाहत मेरी,
न गुजरती है बिन तेरे ये रातें मेरी|
रूठ के यूं .................................
मैखानों की दुनिया से क्या वास्ता,
तेरे नैनों से बुझती है प्यासें मेरी |
रूठ के यूं ...............................
            रामानुज “दरिया”

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