किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  
एक-एक कतरे के बदले
चार-चार जल्लाद चाहिए
अब मुझे हिंसाब चाहिए।।

धरा हुयी जिससे लाल
जिहादियों की किताब चाहिए
अब मुझे हिंसाब चाहिए।


तड़पती माँ के आंसुओं का
बिलखते शहीद के बपुओं का
अब मुझे हिंसाब चाहिए।

इंच-इंच इक -इक सूत का
उतरे हर मंगल सूत्र का
अब मुझे हिंसाब चाहिए।

चूड़ियों के चूर-चूर का
पूंछे हुए सिंदूर का
अब मुझे हिंसाब चाहिए।

चुन-चुन के लाओ
उसके अंत तक जाओ
उसकी लहू से धरा लाल चाहिए
अब मुझे हिंसाब चाहिए।

संविधान को बदल डालो
गला उसका काट डालो
बोटियां कुत्तों को खिलाओ
कुर्बान शहीदों का सम्मान चाहिए
अब मुझे हिंसाब चाहिए।।

            रामानुज "दरिया"




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