किसी का टाइम पास मत बना देना।

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बातों का अहसास मत बना देना मुझे किसी का खास मत बना देना बस इतना रहम करना मेरे मालिक  किसी का टाइम पास मत बना देना। जान कह कर जो जान देते थे ओ चले गये अनजान बन कर फितरत किसकी क्या है क्या पता बारी आयी तो चले गये ज्ञान देकर। अब होंसला दे खुदा की निकाल सकूं खुद को भी किसी तरह संभाल सकूं आसां नहीं रूह का जिस्म से जुदा होना बगैर उसके जीने की आदत डाल सकूं। हमने ओ भयावह मंजर भी देखा है किसी को टूटते हुये अंदर से देखा है अब किसी के लिये क्या रोना धोना हमने तो अब खुद में सिकंदर देखा है।  

दिलकश

उड़ती जुल्फों ने आज शाम कर दी
सरेआम हाल-ए-दिल तमाम कर दी।

बिन थके हर पहलू को सलाम कर दी
बोलने की अदा ने बैठना हराम कर दी

यूं तो खामोसी बहुत डसती है सनम
तेरी बक बक ने जीना हराम कर दी।

भुला भी देता तुझे तो कैसे सनम
तूने तो दिल-ए-दरिया गुलाम कर दी।

लिखी गमों की दास्ताँ ऐसी खुदा ने
हमने त्याग सुखो चैन आराम कर दी

इक चाहत थी की चाहूं तुझे मैं सनम
चाहत ने ही सरे-आम बदनाम कर दी

मैं मुहब्बत के आखिरी पड़ाव में आ गया
उसने आज ही आगाज़-ए-अंजाम कर दी।
                             रामानुज   'दरिया'

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